top of page

क्या चित्र बनाऊं मैं

Updated: Mar 29, 2021

सोच रही हूँ सुबह से कि एक चित्र बनाऊं मैं कुछ विकृत, विषम और कुछ विचित्र बनाऊं मैं

कई निरर्थक लकीर जोड़ कुछ सार्थक बनाऊं मैं कुछ रंग भरके उसको आकर्षक बनाऊं मैं

क्या रूप दे दूं मैं किसी कल्पना को कागज़ पर या सराह लूं मैं किसी स्वप्न को सजग कर

या कि किसी रमणीय स्थल का दृश्य बनाऊं मैं सोच रही हूँ सुबह से कि एक चित्र बनाऊं मैं

भा जाये वो सभी के मन को तमन्ना नहीं ऐसी मेरी बन जाये मेरे मन का दर्पण कामना यही है मेरी

जटिल नहीं, एक साधारण प्रारूप बनाऊं मैं सोच रही हूँ सुबह से कि एक चित्र बनाऊं मैं

श्वेतश्याम हो, रंग भरा हो, चाहे जैसा भी हो अंकित उसमे मैं हूँ और वो मेरे अक्स सा हो

किसी आकृति किसी स्मृति से मिलती

तस्वीर बनों मैं

सोच रही हूँ सुबह से कि

एक चित्र बनाऊं मैं

1 view0 comments

Recent Posts

See All
Post: Blog2_Post
bottom of page