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ज़हर की काट

Colorectal cancer organoids stained with Hoechst (blue) and Phalloidin (yellow). Image by Cellesce, copyright National Physical...

कैसे मैं पहचानूँ तुमको 

कैसे मैं पहचानूँ तुमको? कद, काठी या चाल से? कैसे मैं पहचानूँ तुमको? रंगत या बिखरे बाल से? हाय! आँखों की पहले गहराई क्यों नहीं नापी थी!...

आज मैं बस एक अंक हूं !

REUTERS/DANISH SIDDIQUI आज मैं बस एक अंक हूं । बड़ी सी गिनती का एक छोटा अंग हूं । मेरी पहचान बस नंबरों में है, मेरा अस्तित्व बिखरा...

दीवारें

माना कि थे वो ग़लत और क्रूर अपरम्पार थे । दोषों से वो युक्त थे और पाप के भरमार थे ।। किन्तु दीवारें बना, क्या हमने हत्याएं न कीं? जो हमारे...

नाम से पहचान

Graphic courtesy: The Times of India एक रोज़ मुझे एक चिट्टी आयी, ‘सालों से तूने, न शक्ल दिखाई, आकर मिलो इस दफ्तर से तुम, साथ में लाना चंदन...

स्वरूप

मैं जब भी देखूँ दर्पण में, कुछ बदल रहा मेरे आँगन में। ये स्वरूप मेरा है या रूप तेरा, मैं सोच रही मन ही मन में।। चादर की सफेदी में अपने,...

मारीच की खोज

मैं धरा के जंगलों में ढूंढता मारीच, देखो ! बिछड़े लक्ष्मण और सीता मुझसे किस युग में, न पूछो ! एक उसकी खोज में वर्षों गए हैं बीत मेरे। अब...

ठण्ड की कहानी

यूँ तो हर मौसम की अपनी मनमानी होती है, पर ठण्ड की एक दिलचस्प ही कहानी होती है। धुंध से भीगी रातें तो रूमानी होतीं हैं, पर दिसंबर में...

शिखरों के पार

हृदय को अकुलाता ये विचार है, दृष्टि को रोके जो ये पहाड़ है, बसता क्या शिखरों के उस पार है। उठती अब तल से चीख पुकार है, करती जो अंतः में...

शब्दों का हठ

कहते हैं मुझसे कि एक बच्चे की है स्वप्न से बनना, जो पक्षियों के पैरों में छुपकर घोंसले बना लेते हैं। कहते हैं मुझसे कि एक थिरकती लौ की आस...

अरण्य का फूल

बेलों लताओं और डालियों पर सजते हैं कितने, रूप रंग सुरभि से शोभित कोमल हैं ये उतने। असंख्य खिलते हैं यहाँ और असंख्य मुरझाते हैं, अज्ञात और...

काव्य नहीं बंधते

शब्द तो गट्ठर में कितने बांध रखे हैं, स्याही में घुल कलम से वो अब नहीं बहते। हो तरंगित कागज़ों को वो नहीं रंगते, जाने क्यों मुझसे अब अच्छे...

कल्पना की दुनिया

यथार्थ की परत के परोक्ष में, कल्पना की ओट के तले, एक अनोखी सी दुनिया प्रेरित, अबाध्य है पले। चेतन बोध से युक्त सृजन के सूत्रधारों की,...

पत्तों की बरसात

आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी । अंगड़ाई लेती थी सुबह औंधी गहरी रात हुई थी ॥ पक्षी भी सारे अब चुप थे, घोंसलों में बैठे...

बिम्ब

रेल गाड़ी के डिब्बों में अब नव संवाद कहाँ खिलते हैं, कभी जो आप से बात हुई तो जाना मित्र कहाँ मिलते हैं। शीशे पर उभरे चित्र जब आप ही आप से...

पतझड़

कल्पना करो, कुछ दिनों में ये बंजर हो जायेंगे। ये हवा के संग लहलहाते पत्ते, अतीत में खो जायेंगे॥ जब बारिश की बूंदों में ये पत्ते विलीन...

बढ़ चलें हैं कदम फिर से

छोड़ कर वो घर पुराना, ढूंढें न कोई ठिकाना, बढ़ चलें हैं कदम फिर से छोड़ अपना आशियाना। ऊंचाई कहाँ हैं जानते, मंज़िल नहीं हैं मानते। डर जो कभी...

सैंतीस केजी सामान

फोटो सौजन्य: मृणाल शाह छितराई यादों से अब मैं सैंतिस केजी छाँटूं कैसे? सात साल के जीवन को एक बक्से में बाँधूँ कैसे? बाँध भी लूँ मैं नर्म...

वोट बनाम नोट

चित्र श्रेय: डीएनए इंडिया निर्वाचन का बिगुल बजा, मच रहा था हाहाकार, गली-गली हर घर-घर में, मने उलझन का त्यौहार। “किसे चुनें, किसे सत्ता...

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