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खोयी पहचान

Updated: Mar 29, 2021


चित्र : विकिपीडिया

भू के कुछ वर्गों के पीछे हम लड़े सदियों यहाँ । मच गया विध्वंस पर किसको भला है क्या मिला ॥


संघर्ष के इतिहास में धूमिल है गाथा प्रान्त की । पथ-प्रदर्शक थे जो सारे करते हैं अब भ्रांत ही ॥


युद्ध जो वर्षों लड़े क्या हल था उसका प्रीत से? अब लड़ें अस्तित्व से हम जूझते हैं अतीत से ॥


खो गयी पहचान सब वो रूप यौवन रंग भी । ‘सत्य क्या?’ न प्रश्न ये जो अब हैं हम, वो हम नहीं ॥


सुलझा देता कोई आ जो काल की इन जटाओं को । फिर से लगते फूल-पत्ते रक्त संचित लताओं को ॥


फिर से हो जीवंत मैं हिम के शिखर को चूमती । कुचले-मसले हैं जो धागे उनको दिल से गूंथती ॥


पर ये अब भी स्वप्न कि लाशें हैं अब भी बिछ रहीं । और सब रक्षक हैं बैठे आँखों को मींचे कहीं ॥


क्या करूँ, मैं रोकूँ कैसे रक्तमय इस विवाद को? सुन ले कोई मेरी भी कि अब युद्ध का प्रतिवाद हो ॥


अंत कर दो युद्ध का कि हल करो मसला अभी । कल को अपने तह लगा पहचान ढूँढू मैं नयी ॥


(भारत और पाकिस्तान में ६७ वर्षों से ये विवाद चलता आया है कि कश्मीर किस देश का हिस्सा है । और साथ ही साथ, कुछ लोग कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बनाने का समर्थन भी करते आये हैं । तीनों बलों के इस विवाद में कई लोगों ने अपने जीवन का दान किया है किन्तु, आज तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकला । सभी अपने-अपने स्थान पर अडिग रहे हैं। कश्मीर के अस्तित्व का ये भ्रम ही इस कविता का आधार है ।)

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