Surabhi SonamNov 12, 20171 min readशिखरों के पारहृदय को अकुलाता ये विचार है, दृष्टि को रोके जो ये पहाड़ है, बसता क्या शिखरों के उस पार है। उठती अब तल से चीख पुकार है, करती जो अंतः में...
Surabhi SonamJun 12, 20161 min readबढ़ चलें हैं कदम फिर सेछोड़ कर वो घर पुराना, ढूंढें न कोई ठिकाना, बढ़ चलें हैं कदम फिर से छोड़ अपना आशियाना। ऊंचाई कहाँ हैं जानते, मंज़िल नहीं हैं मानते। डर जो कभी...
Surabhi SonamSep 20, 20151 min readचल, उचक, चंदा पकड़ लेंपक चली उस कल्पना को रंग-यौवन-रूप फिर दें । संकुचित उस सोच के पंखों में फिर से जान भर दें । तर्क के बंधन से उठ कर बचपने का स्वाद चख लें ।...
Surabhi SonamSep 16, 20151 min readमैं आस की चादर बुनती थीचित्र श्रेय: गूगल इमेजेस जब चाँद छुपा था बादल में, था लिप्त गगन के आँगन में, मैं रात की चादर को ओढ़े तारों से बातें करती थी । मैं नभ के...
Surabhi SonamJan 11, 20153 min readकविता की चोरीशब्दों को कर के लय-बद्ध, लिखे मैंने वो चंद पद्य, मन की इच्छा के भाव थे वो, मेरे अंतर्मन का रिसाव थे वो, वो मेरी कहानी कहते थे, मेरे निकट...
Surabhi SonamOct 13, 20141 min readखोयी पहचानभू के कुछ वर्गों के पीछे हम लड़े सदियों यहाँ । मच गया विध्वंस पर किसको भला है क्या मिला ॥ संघर्ष के इतिहास में धूमिल है गाथा प्रान्त की ।...
Surabhi SonamSep 26, 20142 min readस्मारक का गौरवप्रम्बनन के जीर्ण (छवि: प्रतीक अग्रवाल) टूटे-फूटे एक स्मारक ने घंटों की मुझसे बात । पिछले वर्षों के भूकंपों ने तोड़े थे उसके हाथ ॥ आया था...
Surabhi SonamSep 16, 20131 min readज्वलित बन तूसूक्ष्म सी चिंगारी बन तू टिमटिमा जुगनू के संग संग। ज्वाला का सामर्थ्य रख तू अपने भीतर, अपने कण-कण॥ नम्रता की लौ भी बन तू जलती-बुझती,...
Surabhi SonamAug 18, 20132 min readउठ जाग ! ऐ भारतीय !Photo Courtesy Pratik Agarwal उत्तेजना संदेह से कुंठित हैं मनोभाव मिलती नही इस धूप से अब कहीं भी छाँव। हर अंग पर चिन्हित हुआ है भ्रष्ट का...