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पत्तों की बरसात

Updated: Mar 29, 2021

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आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी । अंगड़ाई लेती थी सुबह औंधी गहरी रात हुई थी ॥


पक्षी भी सारे अब चुप थे, घोंसलों में बैठे गुमसुम थे, कैसी ये घटना उनके संग यूँही अकस्मात् हुई थी ।


आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी ॥


सूरज की अब धूप भी नम थी, तपिश भी उसमें थोड़ी कम थी, स्थिति बनाती और गहन तब तेज़ हवा भी साथ हुई थी ।

आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी ॥


शर्म छोड़ सब पेड़ थे नंगे, टेढ़े मेढ़े और बेढंगे, झड़प हुई थी उनमें या कि पत्तों की बरसात हुई थी । आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी ॥

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