हे प्रिय! पकड़ लो हाथ कभी मैं भी दो क्षण फिर साथ चलूँ। जो स्वप्न मौन में आहट दें उनका नयनों से स्पर्श करूँ॥
हे प्रिय! राग बन मिलो कभी तेरी ताल पे मैं नित नृत्य करूँ। जो स्वर वर्षों से अधूरे हैं कर पूर्ण उन्हें, नए गीत लिखूं॥
हे प्रिय! रंग सा बिखरो कभी मैं इंद्रधनुष नभ में गढ़ दूँ। तारों की झिलमिल चमक चुरा हर रात्रि मैं मोदित कर दूँ॥
हे प्रिय! शब्द बन बहो कभी मैं स्मृतियों को नयी भाषा दूँ। तेरे मृदुल संग के शीत तले कभी मैं फिसलूँ, तो कभी सम्भलूँ॥
हे प्रिय! कभी रुक, मेरा नाम तो लो हर श्वास इसी एक आस पे लूँ। तुम थामो साँस की लड़ियाँ मेरी मैं तुमको अन्तः में भर लूँ॥
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