फोटो सौजन्य: मृणाल शाह
छितराई यादों से अब मैं सैंतिस केजी छाँटूं कैसे? सात साल के जीवन को एक बक्से में बाँधूँ कैसे?
बाँध भी लूँ मैं नर्म रजाई और तकिये को एक ही संग और लगा कर तह चादर को रख दूँ उनको एक ही ढंग
बिस्तर की सिलवट से पर मैं सपनों को छाँटूँ कैसे? सात साल के जीवन को एक बक्से में बाँधूँ कैसे?
ढेर किताबों की दे दूँ मैं किसी कनिष्ठ के घर पर भी बेच मैं दूँ पुस्तिकाऐं अपनी व्यर्थ सारी समझ कर भी
पर ज्ञान के रस को अब मैं पन्नों से छानूँ कैसे? सात साल के जीवन को एक बक्से में बाँधूँ कैसे?
कपड़े पुराने और जूतों को दान कहीं मैं कर भी दूं तस्वीरों के संग्रह को मैं डब्बों में यदि भर भी दूं
पर यात्राओं के अनुभव को चित्रित कर डालूँ कैसे? सात साल के जीवन को एक बक्से में बाँधूँ कैसे?
कागज़ पर लिखे शब्दों को छपवा दूँ मैं पुस्तक में मित्रों के उपहारों को सहेज रखूँ प्रदर्शन में
पर प्रेम के इंद्र-धनुष को बस्ते में डालूँ कैसे? सात साल के जीवन को एक बक्से में बाँधूँ कैसे?
बड़गद से टूटे पत्तों को रस्ते से मैं चुन भी लूँ और पुरानी राहों को मैं आँखों में यदि भर भी लूँ
किन्तु हास से युक्त क्षणों की आवृत्ति कर डालूँ कैसे? सात साल के जीवन को एक बक्से में बाँधूँ कैसे?
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