मेरे गाँव के तालाब से सटे, जहां छोटी पगडण्डी जाती है, वहां, पेड़ों के झुर्मुठ के तले, एक है मेरा छोटा सा।
एक बगिया है, जहां फूल खिले कुछ नीले, पीले और हरे उनकी भीनी खुशबू के तले, एक घर है मेरा छोटा सा।
एक तालाब है, कमलों से घिरा, छोटी छोटी मीनों से भरा, तालाब के उस पार खड़ा बड़गद का है एक पेड़ बड़ा, इस पार की दरिया से सटे, एक घर है मेरा छोटा सा।
सुबह सूरज की किरणें जब मेरे द्वार से टकराती हैं मुझे गुदगुदा कर जाती हैं उन किरणों के उजाले तले एक घर है मेरा छोटा सा।
हर शाम आती हैं तितलियाँ भी कभी कमलों में, कभी बगिया में, किलकारियां करती जाती हैं, उनके परों के रंगों तले, एक घर है मेरा छोटा सा।
एक शाम मैं बाज़ार गयी कहीं चुपके से, पगडण्डी से, बहुत ज़ोर की आंधी आई, उस तूफ़ान में घर घिर सा गया। हिम्मत की मेरे घर ने बहुत बहुत देर तक आंधी से लड़ा।
आंधी चुपके से फिर चली गयी पर घर की सीढ़ी टूट गयी। वो पीछे का जो कमरा था उसके दीवारों में दरारें पड़ी। आँगन में जहां तुलसी थी उसकी नींव भी थोड़ी हिल सी गयी। खिडकियों के शीशे टूट गए दरवाजों में सीलन से पड़ी। बांगों के फूल मुरझा गए मछलियाँ बहुत सहम सी गयीं। बड़गद ने भी कई टहनियाँ खोयीं और दरिया भी थोड़ी सिमट गयी।
उस शाम न किरणें आयीं, ना तितलियों की मैंने किलकारी सुनी, ना रंग था ना उजाला था, फूलों की खुशबू भी मद्धम थी पड़ी।
अगली रोज़ जब सूरज जागा किरणों को उसने मेरे घर भेजा। बागों में नन्ही कलियाँ खिलीं मछलियों का डर कुछ कम सा हुआ। उस टूटी सीढ़ी के मलबे को धीरे धीरे फिर मैंने चुना। दीवारों में नये रंग भरे टूटे शीशे भी हटा दिए। दरवाजों के तख्ते बदले दरिया की भू भी समतल कर दी। बड़गद पर नये पत्ते आये उसके जड़ों की भी मजबूती बढ़ी।
कई साल बीत गए इस घटना को पर आज भी जब बारिश होती है। मन शिथिल सा हो जाता है। पीछे के कमरे की दीवारें भी फिर सिसकियाँ ले कर रोती हैं। चुभ गए थे शीशे मुझे जहां एक टीस से उठती है वहाँ।
फिर देखती हूँ मैं उस तुलसी को जो आँगन में है आज भी खिली। उसके पत्तो की खुशबू से भरा ये घर है मेरा छोटा सा॥
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