मेरा कमरा
Updated: Mar 29, 2021

समतल भाव, उजला है चेहरा, रसोई-लगा मेरा वो कमरा।
खिड़की के बाहर को झांकता, बारिश की लय पर है बरसता, सूरज की लौ को है तरसता, हवा-थपेड़ों संग वो हँसता,
सुनता, बूझता, मूक, न बहरा, रसोई-लगा मेरा वो कमरा॥
उज्जवल हो मुझे गोद भरे वो, सुन कर बस मेरे कष्ट हरे वो, आँखें मूँद फिर नींद जड़े वो, सपनों को बिस्तर पे धरे वो,
गहरी नींद पर द्वार दे पहरा, रसोई-लगा मेरा वो कमरा॥
रंगो-तस्वीरों से सज्जित, घड़ी की टिक-टिक सा वो जीवित, मेरी बेसुरी धुनों से पीड़ित, फिर भी मेरे सुख में हर्षित,
समझे मेरा भाव हर गहरा, रसोई-लगा मेरा वो कमरा॥
जालों से परेशान न होता, सीलन पर मुझसे न लड़ता, पंखे के स्वर में वो रोता, विरह का दुःख तो उसे भी होता,
कल से फीका पड़ा वो चेहरा, रसोई-लगा मेरा वो कमरा॥
(यह कविता मेरे उस कमरे को समर्पित है जिसमें मैंने अपने पिछले डेढ़ बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ष बिताएं हैं। अब १५ दिन में हमारा साथ छूटने वाला है ।)
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