भूल जाओ मुझे, क्यूँ मेरे लाश को बार बार जगाते हो? क्यूँ मेरे अंत पर तुम प्रश्न चिन्ह लगाते हो? मेरे साथ ही तो उस सभ्यता का अंत हो गया था फिर क्यूँ उन कहानियों को तुम हर बार दोहराते हो? क्यूँ मेरे अंत पर तुम प्रश्न चिन्ह लगाते हो?
भूल जाओ मुझे, मैं बस एक अतीत का टुकड़ा ही तो हूँ जिससे भाग्य रूठा था वो एक मुखड़ा ही तो हूँ फिर क्यूँ मेरे स्वामित्व का स्वांग लगाते हो? क्यूँ मेरे अंत पर तुम प्रश्न चिन्ह लगाते हो?
भूल जाओ मुझे, चमकता हुआ मेरा वो चरम डूब चूका है प्रसिद्धि का हर राग मुझसे ऊब चूका है फिर क्यूँ सूरज और चाँद से मुझे सजाते हो? क्यूँ मेरे अंत पर तुम प्रश्न चिन्ह लगाते हो?
भूल जाओ मुझे, कि अब मुझे चैन से सोने दो किस्सों की परतों में अब मुझे खोने दो क्यूँ लड़-लड़ के मेरी रूह को डराते हो? क्यूँ मेरे अंत पर तुम प्रश्न चिन्ह लगाते हो?
(सन्दर्भ : उन सभी स्मारकों की ओर से जिनके नाम पर इंसान आपस में लड़ाई करते आ रहे हैं। )
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