top of page
Surabhi Sonam

बंद दफ्तर

Updated: Mar 29, 2021


purana daftar

ताले में वो बंद दफ्तर उसमे बूढी वो कुर्सियाँ, चुप से कोने में पिरोती कर्कशी खामोशियाँ।


कब से हो के मौन बैठे टाइपराइटर वो पुराने, गूंजता था दफ्तर सारा जिनकी खट-खट के बहाने।


धूल की मोटी परत अब जिस्म हर ओढ़े हुए है, सालों से वो peon भी तो अपना मुख मोड़े हुए है।


जब भी पर्दों की सुराखें किरणों को कभी आने देती, खिड़कियों पर वो भी आके ओस के आंसू बहाती।


कागज़ों के ढेर सारे जाने कब से शांत बैठे, मेज़ों के कमज़ोर पाये बोझे से बर्बस हैं टूटे।


पीलेपन की ओढ़नी से स्याह भी धुंधला गयी है, दीवारों की सीलन से एक बेबसी सी छा गयी है।


जब कभी झोंके हवा के पानी के छींटे हैं लाते, उड़ के ये बेबाक पन्ने कमरे की चुप्पी चुराते।


कोई न अब खोलता है बंद दरवाज़े के ताले, ज़ंग भी अब लग गयी है पड़ गए छेदों में छाले।


फिर भी वो रेशम से जाले कमरे के कोनों से लग कर, जीवन का संकेत देते चांदनी में वो चमक कर।


जल के अब भी दीप कोई बुनता नयी है कहानियाँ, ताले में वो बंद दफ्तर उसमे बूढी वो कुर्सियाँ॥

#HindiPoetry #Inspiration #Poems #हिन्दी #कविता #दफ्तर #office #old

0 views0 comments

Comentários


Post: Blog2_Post
bottom of page