आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी । अंगड़ाई लेती थी सुबह औंधी गहरी रात हुई थी ॥
पक्षी भी सारे अब चुप थे, घोंसलों में बैठे गुमसुम थे, कैसी ये घटना उनके संग यूँही अकस्मात् हुई थी ।
आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी ॥
सूरज की अब धूप भी नम थी,
तपिश भी उसमें थोड़ी कम थी,
स्थिति बनाती और गहन तब
तेज़ हवा भी साथ हुई थी ।
आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी ॥
शर्म छोड़ सब पेड़ थे नंगे, टेढ़े मेढ़े और बेढंगे, झड़प हुई थी उनमें या कि पत्तों की बरसात हुई थी । आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी ॥
Comments