top of page

तुम्हारा लैबकोट

Surabhi Sonam

Updated: Mar 29, 2021


20130331_135625

तुम्हारा लैबकोट मिला एक दिन तुम्हारी कुर्सी पर लटका हुआ खोया- खोया मायूस सा, चेहरा बिलकुल उतरा हुआ। किसी ने सुबह से उसका हाल ना पूछा था किसी ने उसकी तरफ मुड़ के भी तो ना देखा था।


डूबा हुआ था वो तुम्हारी छितराई यादों में ‘क्यूँ छोड़ गया मुझे वो?’ यही सवाल था उसकी फरियादों में। जब मैंने उसके कंधे पर से जमी धुल हटाई उसकी उदास आँखें आंसुओं से भर आयीं।


डबडबाई आँखों से फिर उसने मेरी ओर देखा झुकी हुई पलकों पर खिंची था आशा की एक रेखा। ‘देखा है कई बार मैंने तुम्हे यहाँ आते-जाते कहाँ है मेरा मालिक, क्यूँ नहीं तुम ही मुझे बताते?’


दुविधा बड़ी थी, कैसे उसे बताऊँ चला गया वो दूर देश, कैसे अब मैं समझाऊं। परिस्थिति समझ पाने की उसमे हिम्मत नहीं थी कैसे समझाऊं मैं उसे कि उसकी किस्मत यही थी।


मुझे ख्यालों में खोया देख उसके आंसुओं का बाँध टूट गया उसके संयम का घड़ा यूँही जैसे हो फूट गया। ‘क्यूँ परसों से आया नहीं वो? अस्वस्थ है या है व्यस्त कहीं वो?


सब कहते हैं की वो चला गया लैब से झूठ है ये, मैं समझा रहा इन सबको कब से। इन इठलाती लैबकोटों की अब तुम ही कह दो ये बात छोड़ा नहीं मेरे मालिक ने अब भी मेरा साथ।


कह दो तुम इन सब से कि कल वो लैब वापिस आएगा मुझे पहन कर वो काम पर फिर से जायेगा। चिढाने में जाने इन्हें क्या मज़ा आता है मुझे इन सब में से अब कोई नहीं भाता है।’


सच से उसे अपरिचित जान, असमंजस में मैं पड़ी उसकी मासूमियत को देख वहाँ रही मैं अवाक खड़ी। क्या उसे कटु सत्य से परिचित कराना सही है? या उसे इस मधुमिथ्या में जीने देना सही है?


असहाय खुद को जान मैं बड़े अफसरों की पास गयी लैबकोट की व्यथा बता फिर राहत की सांस ली। उन्होंने भी उसके प्रति सहानुभूति जताई उसके पुनरावंटन के लिए समिति बिठाई।


घंटों बाद अनायास एहसास हुआ कहीं दूर था कोई चीख रहा। आवाज़ उत्तर से आ रही थी मैं पहुंची तो देखा, वहाँ एक भीड़ खड़ी थी।


सारे पुराने रसायन फेंके जा रहे थे अप्रयुक्त सामानों के बड़े ढेर लगे थे। उस ढेर में से ही कोई चिल्ला रहा था कुछ बक्से हटा के देखा तो वहाँ लैबकोट पड़ा था।


उसका पहचान पत्र अफसरों ने निकाल दिया था और उसे बाकियों के साथ धुलने में डाल दिया था। लैबकोट वहां पड़ा-पड़ा कराह रहा था ‘मुझे मेरे मालिक से मिलवा दो’ यही दोहरा रहा था।


‘मेरा मालिक चला गया ना?’ उसने मुझसे सवाल किया ‘इसीलिए इन अफसरों ने उसका पहचान पत्र हटा दिया।’ ‘धुलाई के लिए भेज रहे हैं, वो तुम्हे फिर से लायेंगे नए मालिक के लिए वो तुम्हें नया बनायेंगे।’


‘नया मालिक….’ शब्द निकले ही थे उसके बेजान होठों से डाल दिया किसी ने उसे तब तक धुलाई के डिब्बे में।


कई दिन बीत गए इस घटना में जब मेरी स्मृति भी थोड़ी सी सिमटने लगी थी जब

अचानक मेरे बगल वाली कुर्सी से आवाज़ आई, ‘अभी तो हफ्ते हुए हैं बस ढाई और तुम अभी से मुझे भूल गए हो अपनी दुनिया में बिलकुल खो से गए हो।’


‘पहचाना नहीं मैंने तुम्हें, क्या हम पहले भी मिले हैं? यहाँ तो तुम जैसे लैबकोटों के मेले से लगे हैं।’ ‘मैं वही हूँ जो इस मेले में खो गया था मालिक के चले जाने पर अपना अस्तित्व ही भूल गया था।’


‘ओह! फिर तो पहचान हमारी पुरानी हैं कहो भाई! कैसी चल रही तुम्हारी कहानी है? तुम तो धुल के बहुत चमकने लगे हो क्या अब भी पुराने मालिक को ढूंढ रहे हो?


‘नए मालिक ने मुझे ढूंढ लिया कब से उसकी दिनचर्या में मैं भी ढल गया तब से।’ ‘वाह! ये तो तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई है लगता है, सुलझ गयीं तुम्हारी अभी सारी कठिनाई है।’


‘हल मिल गया था मुझे तभी जब मैं धुल कर निकला था उस मशीन में अपने अतीत बहा मैं आगे बढ़ा था। मशीन में दूसरों से टकरा कर एक बात समझ में आई किसी एक की सेवा के लिए नहीं हुई थी मेरी बुनाई।


मेरे जीवन का उद्देश्य तो रक्षा करना है जो भी मुझे पहने उसकी ढाल बनना है। मैदान में सूखते हुए फिर ये स्पष्ट हुआ मेरा आविष्कार तो विज्ञान के लिए है हुआ। मेरा स्वामित्व किसी एक तक सीमित नहीं है विज्ञान की उन्नति में जो लगे, मेरे मालिक वो सभी हैं।’


लैबकोट के विचार सुन मेरे अंतर्मन को ये समझ आया मेरे प्रिय मित्र ! अब वो बस तुम्हारा ना रह गया। परिवर्तन का रूप निरंतर उसने अब मान लिया है प्रकृति का ये मूल सिद्धांत उसने अब जान लिया है। इस नियम को स्वीकृत कर अब अपने मोल से अवगत है वो उसका ये सारा जगत और अब इस सारे जगत का है वो॥

2 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments

Couldn’t Load Comments
It looks like there was a technical problem. Try reconnecting or refreshing the page.
Post: Blog2_Post

©2021 by Surabhi Sonam. Proudly created with Wix.com

bottom of page