पक चली उस कल्पना को रंग-यौवन-रूप फिर दें । संकुचित उस सोच के पंखों में फिर से जान भर दें ।
तर्क के बंधन से उठ कर बचपने का स्वाद चख लें । फिर अधूरा स्वप्न बुन कर चल उचक चंदा पकड़ लें ॥
शंका की सीमा हटा, अद्वितीय कोई काम कर दें । जिंदगी की होड़ से हट कर कोई संग्राम कर दें ।
फिर से जिज्ञासा-पटल पर साहसी ये पाँव रख दें । फिर अधूरा स्वप्न बुन कर चल उचक चंदा पकड़ लें ॥
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