यथार्थ की परत के परोक्ष में, कल्पना की ओट के तले, एक अनोखी सी दुनिया प्रेरित, अबाध्य है पले।
चेतन बोध से युक्त सृजन के सूत्रधारों की, अनुपम रचनाओं और उनके रचनाकारों की।
सृजन फलता है वहाँ विचारों के आधार पर। उत्पत्तियाँ होतीं हैं भावना की ललकार पर।
सजीव हो उठती हैं आकृतियाँ ह्रदय को निचोड़ने मात्र से, हर तृष्णा सदृश हो जाती है अंतः के अतल पात्र से।
इसके उर में जीते वो जीव रेंगते रेंगते कभी खड़े हो जाते हैं। कभी उद्वेग से भर कर एक आंदोलन छेड़ जाते हैं।
कल्पना के उस पार जाने का, यथार्थ को वक्ष से लगाने का, ह्रदय की नाड़ियों से निकल कर मस्तिष्क में बस जाने का।
कल्पना और यथार्थ के क्षितिज पर तब एक अलग ब्रह्माण्ड रचता है। जहाँ कल्पित वास्तविकता बन कर फलीभूत होता है।
जल के वेग से बहते विचार, चट्टान तोड़, नया पथ गढ़ते हैं। नैत्य का ढांचा तोड़, विस्तृत एक रूप धरते हैं।
विचारधारा के नए मार्ग पर ज्ञान उसका अनुसरण करता है। और कल्पना की ओट में एक नव प्रकरण चलता है॥
Comentarios