दोषयुक्त है बगिया सारी विष का हुआ है वास सोच रहे हैं भँवरे सारे करूँ मैं किसकी आस?
छोड़ गए परिजन हैं सारे ना ज्योत, ना विलास सोच रहे हैं वृद्धा सारे करूँ मैं किसकी आस?
है विरक्त सशक्त समाज और करे ना कोई प्रयास सोच रहे हैं दुर्बल सारे करूँ मैं किसकी आस?
सियासतों की लगती बाज़ी क्षतिग्रस्त विश्वास सोच रही है जनता सारी करूँ मैं किसकी आस?
कंस मंथरा शकुनि बने सब लूट रहे हस्तिनापुर गोकुल जल रहा अयोध्या का आँचल मथुरा में भी है त्रास सोच रही है प्रजा बेचारी करूँ मैं किसकी आस?
आस विलास विश्वास प्रयास का हुआ है जग में नाश जल रहा है बोध वृक्ष और मौन है चोलावास हरीशचंद्र की नगरी में अब मिथ्या का है प्रवास बिछ रही स्वतंत्र धरा पर लोकतंत्र की लाश जंग छिड़ी धर्मों में सारे प्रबल हो किसका प्रकाश सोच रही सभ्यता सारी करूँ मैं किसकी आस?
Comments