पृष्ठभूमि : अभिमन्यु चक्रव्यूह के आखिरी चरण में हैं। वे खुद को ये समझा रहे हैं कि अंतिम चरण की लड़ाई कैसे उनके कौशल पर निर्भर करती है । खुद को समझाने की इस क्रिया में वे चक्रव्यूह में प्रवेश करने के निर्णय से लेकर अंतिम चरण तक पहुँचने की कहानी को स्मरण करते हैं ।
कर चुका कई वीरों का दमन और प्रविष्ट हुआ मैं अंतिम चरण अब करूँ मैं वो आरम्भ स्मरण लिया निर्णय मैंने जिस क्षण ‘अब आये राह में कोई अड़चन करूँगा मैं ही ये व्यूह-खंडन’।
‘कुरुक्षेत्र में था चक्रव्यूह सजा कौरवों ने क्या षड़यंत्र रचा अर्जुन थे लड़ने दूर गए सब कुंती-पुत्र थे विमूढ़ खड़े’ कैसे न करता मैं स्व अर्पण? ‘करूँगा मैं ही ये व्यूह-खंडन’।
‘माँ के गर्भ को याद किया जब पिता से व्यूह का ज्ञान लिया सीखा मैंने भीतर जाना न सीख सका बाहर आना था अपूर्ण ज्ञान, पर पूर्ण स्मरण करना मुझे ही था व्यूह-खंडन’।
‘माँ की ममता न रोकी मुझे मोह न था कोई जकड़े मुझे’ पुरखों को दिलाऊँ न्याय सही जन्म ये मेरा सफल हो तभी कर्त्तव्य ही है ये मेरा जीवन करूँगा मैं ही ये व्यूह-खंडन।
‘करने पिता का पूर्ण मैं काज रखने को अपने कुल की लाज साहस को अपनी बाँह बाँध घुस गया था मैं शेरों की मांद व्यग्र होता मेरा कण-कण करना मुझे ही था व्यूह-खंडन।
सीखी पिता से थी युद्ध कला अंतस्थ उसे कर मैं निकला तीरो का कुछ यूँ दौर चला जड़ रुपी पद्म का द्वार कटा कांपी धरती कांपा वो गगन कर रहा था मैं यूँ व्यूह-खंडन।
हर योद्धा पहले पर भारी था पर युद्ध तो मेरा जारी था हर शूरवीर को परास्त किया दुर्योधन-पुत्र का अस्त हुआ लड़ा मैं ऐसा संग्राम गहन करना मुझे ही था व्यूह-खंडन।’
मैं आया सर्पिल-चक्र अंदर था ज्ञात यहीं तक का उत्तर महारथी कई हैं समक्ष खड़े है बाण-भाल सब ले के अड़े एकाग्र करूँ खुद को हर क्षण करूँगा मैं ही ये व्यूह-खंडन।
आ चूका है देखो अंतिम चरण कि लक्ष्य पर ही हों टिके नयन पूरी ऊर्जा से अब मैं लड़ूँ किसी छल कपट से अब मैं न डरूँ जीतूँ जिस ओर भी रखूँ चरण करूँगा मैं ही ये व्यूह-खंडन।
रोके पराक्रमी समूह तो क्या सीखा न तोडना व्यूह तो क्या अपूर्ण विद्या न बेड़ी बने कौशल को थाम मेरी शक्ति बढ़े न डर मुझमें, न कोई स्पंदन करूँगा मैं ही ये व्यूह-खंडन।
कम आयु न मेरा अवरोध करे मेरे जनन का सृष्टि बोध करे मैं लिख दूं अब एक ऐसा कल मेरा स्मरण करे ये विश्व सकल हर वीर करे सदा मुझे नमन मैं अवश्य करूंगा व्यूह-खंडन।
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