उजाले से आलिंगन
Updated: Mar 29, 2021

अशांत व्यग्र अतृप्त है मन भावों में कुंठित, लिप्त है मन। तम प्रबल आंधी सा बनकर छीनता मन से है यौवन॥
किन्तु है एक चन्द्र ज्योति नभ के माथे पर सुशोभित। उजाला बन वो तम से लड़ती करती है कण-कण प्रकाशित॥
दीप के लौ सी है उज्जवल सूर्य किरणों में है पलती। जल क्षितिज वायु में बस कर मन के तम को झट ही हरती॥
मन कभी फिर प्रेरणा ले सोचता कि उठ खड़ा हो। इन्द्रियों से अपनी कहता “आज इस तम को हरा दो॥
चन्द्रमा की श्वेत ज्योति कर में आपने आज धर लो। पथ का है जो उजाला बनती आलिंगन उसका आज कर लो”॥