अधखुली तेरी आँखों में लिखे थे अधूरे शब्द स्वयं को बांधे हुए थी मैं संकुचित, निस्तब्ध।
तरंगों की आंधी में खिंच रहे थे अधीर मन भावों के भंवर से घिरे थे, हम आत्म-संलग्न।
पवन-बयार संग थी जगमग चांदनी मद्धम साँसों की लय पर थिरकती वाहिनी थम-थम।
उँगलियों की नर्मी से थे अभिभूत दो ह्रदय डोलते क़दमों से छिड़ा निर्बाध प्रेम-विषय।
हर क्षण ने जोड़ा था ईंट झिझक के उस पार होठों का वो स्पर्श और उसमें मिश्रित प्यार।
स्नेहिल भावों में हुआ था लुप्त ये संसार प्रेमालिंगन से सुलझा, उलझा हर विचार।
बीत गए वो क्षण पर हैं आज भी अंकित पहले प्रेम का प्रवाह, ह्रदय में आज भी संचित।
पूर्ण करने को मिलन वो इच्छित है ये मन सम्पूर्ण हो प्रसंग जब हो पुनः आलिंगन॥
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