REUTERS/DANISH SIDDIQUI
आज मैं बस एक अंक हूं । बड़ी सी गिनती का एक छोटा अंग हूं । मेरी पहचान बस नंबरों में है, मेरा अस्तित्व बिखरा आंकड़ों में हैं ।।
कल तक मेरा एक नाम था, छोटा ही सही, एक अभिज्ञान था । मेरे परिचित मेरा सम्मान करते थे, मेरे व्यक्तित्व का संज्ञान करते थे ।।
आज मैं बस एक अंक हूं । बड़ी सी गिनती का एक छोटा अंग हूं । मेरे पड़ोसी मुझसे कतराते हैं, परिजन भी डरे से नजर आते हैं ।।
कल तक मैं एक मजदूर था, अदृश्य था, परिवार से दूर था । फिर भी अपने काम में व्यस्त था, दीन था, पर सशक्त था ।
आज मैं बस एक अंक हूं । बड़ी सी गिनती का एक छोटा अंग हूं । लोगों से मिले दान पर मजबूर हूं, मीलों चल कर भी परिवार से दूर हूं ।।
कल तक मैं एक डॉक्टर था, जीवन दायक चिकित्सक था । जीवन-मृत्यु से निरंतर जूझता था, रोगों की पहेलियाँ रोज़ बूझता था ।।
आज मैं बस एक अंक हूं । बड़ी सी गिनती का एक छोटा अंग हूं । सीमित संरक्षण लैस, दिन-रात लड़ता हूं, फिर भी मैं पत्थरों की मार सहता हूं ।।
कल तक मैं एक किसान था, गरीब था, पर बलवान था । टोकरियों में भर कर सेहत बेचता था, जो कम पड़ जाएं तो धूप सेंकता था ।।
पर आज मैं बस एक अंक हूं । बड़ी सी गिनती का एक छोटा अंग हूं। फल-अनाज अब नाली में सड़ रहे हैं, बच्चे अब भूख की बीमारी से मर रहे हैं ।।
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