courtsey: trip to Mt. Bromo
पहले पहर के सूरज के संग समेट के अपना सामान और बाँध के अपने जूते निकल पड़े थे हम घर के सामने की सुनहरी पगडण्डी पर।
हवा के थपेड़े खाते अरमानों की मशाल से राह देखते चल रहे थे हम गगनचुम्बी उन हरे पहाड़ों पर।
धूल-धूसरित, ऊंची-नीची राहों पर हाथों को थामते, क़दमों को संभालते, बढ़ रहे थे हम बड़े हौसले और डगमग चाल लेकर।
एक तलाश थी दिल को कुछ नीले, पीले, सफ़ेद रंगों की एक आस थी मन को, नए हवा में कुछ साँसों की एक नए एहसास की जो बस जाये हम में अपना बनकर।
कुछ दूर पहुँचते ही सहसा एहसास हुआ झुकने लगे थे बादल भी हमारे समक्ष जैसे, करने आयें हों अभिनन्दन हमारा बढ़ने आयें हों हिम्मत हमारी की कुछ और अर्चनें ही बचीं थीं उस पथ पर।
मंजिल अब सामने थी हमारे सूरज के पहले किरणों से नहाई और विस्मयित खड़े थे हम सराहते, अपने इस नए अनुभव को इठलाते अपनी उपलब्धि पर।
एक नयी स्फूर्ति से भरे आनंद रस में ओत-प्रोत हम उमगों की लहरों में तैरते निहारते रहे प्रकृति के उस अद्भुत भाव को स्तंभित उसकी भव्य कृति पर।
घंटो बीत गए पर्वत की बाहों में पहुँच गया सूरज भी चरम पर फिर हम भी उठे बांधे अपने जूते फिर से और निकल पड़े अपनी अगली मंजिल की ओर नए रंगों की ओर नए तलाश की ओर एक नए अनुभव, नयी स्मृति के पथ पर।
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