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ठण्ड की कहानी

यूँ तो हर मौसम की अपनी मनमानी होती है, पर ठण्ड की एक दिलचस्प ही कहानी होती है। धुंध से भीगी रातें तो रूमानी होतीं हैं, पर दिसंबर में...

शिखरों के पार

हृदय को अकुलाता ये विचार है, दृष्टि को रोके जो ये पहाड़ है, बसता क्या शिखरों के उस पार है। उठती अब तल से चीख पुकार है, करती जो अंतः में...

शब्दों का हठ

कहते हैं मुझसे कि एक बच्चे की है स्वप्न से बनना, जो पक्षियों के पैरों में छुपकर घोंसले बना लेते हैं। कहते हैं मुझसे कि एक थिरकती लौ की आस...

अरण्य का फूल

बेलों लताओं और डालियों पर सजते हैं कितने, रूप रंग सुरभि से शोभित कोमल हैं ये उतने। असंख्य खिलते हैं यहाँ और असंख्य मुरझाते हैं, अज्ञात और...

काव्य नहीं बंधते

शब्द तो गट्ठर में कितने बांध रखे हैं, स्याही में घुल कलम से वो अब नहीं बहते। हो तरंगित कागज़ों को वो नहीं रंगते, जाने क्यों मुझसे अब अच्छे...

कल्पना की दुनिया

यथार्थ की परत के परोक्ष में, कल्पना की ओट के तले, एक अनोखी सी दुनिया प्रेरित, अबाध्य है पले। चेतन बोध से युक्त सृजन के सूत्रधारों की,...

पत्तों की बरसात

आँख खुली तो देखा मैंने, रात अजब एक बात हुई थी । अंगड़ाई लेती थी सुबह औंधी गहरी रात हुई थी ॥ पक्षी भी सारे अब चुप थे, घोंसलों में बैठे...

बिम्ब

रेल गाड़ी के डिब्बों में अब नव संवाद कहाँ खिलते हैं, कभी जो आप से बात हुई तो जाना मित्र कहाँ मिलते हैं। शीशे पर उभरे चित्र जब आप ही आप से...

पतझड़

कल्पना करो, कुछ दिनों में ये बंजर हो जायेंगे। ये हवा के संग लहलहाते पत्ते, अतीत में खो जायेंगे॥ जब बारिश की बूंदों में ये पत्ते विलीन...

बढ़ चलें हैं कदम फिर से

छोड़ कर वो घर पुराना, ढूंढें न कोई ठिकाना, बढ़ चलें हैं कदम फिर से छोड़ अपना आशियाना। ऊंचाई कहाँ हैं जानते, मंज़िल नहीं हैं मानते। डर जो कभी...

सैंतीस केजी सामान

फोटो सौजन्य: मृणाल शाह छितराई यादों से अब मैं सैंतिस केजी छाँटूं कैसे? सात साल के जीवन को एक बक्से में बाँधूँ कैसे? बाँध भी लूँ मैं नर्म...

Plastic deformation

Courtesy: My birthday gift from a few dear friends Yesterday, while walking, I wrote some words in ink. Some were bitter, harsh Some...

वोट बनाम नोट

चित्र श्रेय: डीएनए इंडिया निर्वाचन का बिगुल बजा, मच रहा था हाहाकार, गली-गली हर घर-घर में, मने उलझन का त्यौहार। “किसे चुनें, किसे सत्ता...

चल, उचक, चंदा पकड़ लें

पक चली उस कल्पना को रंग-यौवन-रूप फिर दें । संकुचित उस सोच के पंखों में फिर से जान भर दें । तर्क के बंधन से उठ कर बचपने का स्वाद चख लें ।...

मैं आस की चादर बुनती थी

चित्र श्रेय: गूगल इमेजेस जब चाँद छुपा था बादल में, था लिप्त गगन के आँगन में, मैं रात की चादर को ओढ़े तारों से बातें करती थी । मैं नभ के...

That silent guitar

Silently, it lays. Strings out of tune. Nothing brings life, Neither sun, nor moon. Skin has lost luster, Lies yellow and pale Crawlers...

ये लहरें किधर हैं जाती?

डूब रहा है सूरज और गोधूलि हुई है बेला, बादल के सिरहाने पर किरणों का लगा है मेला । ऐसे में ये चंचल लहरें छोड़ के अपने घर को, बेसुध हो,...

कविता की चोरी

शब्दों को कर के लय-बद्ध, लिखे मैंने वो चंद पद्य, मन की इच्छा के भाव थे वो, मेरे अंतर्मन का रिसाव थे वो, वो मेरी कहानी कहते थे, मेरे निकट...

खोयी पहचान

भू के कुछ वर्गों के पीछे हम लड़े सदियों यहाँ । मच गया विध्वंस पर किसको भला है क्या मिला ॥ संघर्ष के इतिहास में धूमिल है गाथा प्रान्त की ।...

स्मारक का गौरव

प्रम्बनन के जीर्ण  (छवि: प्रतीक अग्रवाल) टूटे-फूटे एक स्मारक ने घंटों की मुझसे बात । पिछले वर्षों के भूकंपों ने तोड़े थे उसके हाथ ॥ आया था...

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