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स्वयं को परमार्थ कर

रात, बादल से निकल कर, चाँद ने टोका मुझे, “है क्यों इतना तू परेशां, कैसी है चिंता तुझे? क्यों तू एकाकीपने की ओट में लेटा रहे? क्यों तू...

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